Anti Corruption Campaign, Agra 2011


जरूरत है भ्रष्टाचारमुक्त प्रभावी पुलिस व्यवस्था की

नजीर बन सकती है आगरा के डीआईजी असीम अरूण की ऐतिहासिक पहल
सितंबर 2011, आगरा

लगन, निष्ठा और ईमानदारी से कुछ करने की दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो असंभव कार्यो को भी सफलतापूर्वक संभव बनाने की कोशिश की जा सकती है। ऐसी समस्याओं के समाधान की भी कोशिश की जा सकती है, जिनके बारे में यह धारणा बन चुकी होती है कि समाधान कैसे भी संभव नहीं है। एक ऐसा विभाग जिसे भ्रष्टाचार से मुक्त करने की सोचना तो दूर कल्पना भी नही की जा सकती, उस पुलिस विभाग को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का बीड़ा उठाया है आगरा के डीआईजी असीम अरूण ने।

आगरा की जागरूक जनता की मांग पर उन्होने आगरा पुलिस को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास शुरू कर दिये हैं। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप यूपी पुलिस और सरकार का गौरव बढ़ेगा, वहीं महत्वपूर्ण पर्यटन केन्द्र होने के कारण ताजनगरी का देश-विदेश में नाम ऊंचा होगा। उत्तर प्रदेश में किसी आईपीएस अधिकारी द्वारा ऐसी ऐतिहासिक पहल शुरू किये जाने की सर्वत्र चर्चा के साथ प्रशंसा हो रही है। अधिकांश लोगों का मानना है कि इस दिशा में सोचना और पहल करना ही बहुत बड़ी बात है। उनकी ऐतिहासिक पहल की सफलता दूसरे शहरों के लिए नजीर बन सकती है।

            ‘‘हम भारत के संविधान की शपथ लेकर प्रण करते हैं कि हम अपने आप को हर भ्रष्टाचार से दूर रखेंगें और आत्मबल विकसित कर अपने विभाग और समाज से इसे दूर करने के लिये निर्णायक कार्यवाही करेंगे, ईश्वर हमें शक्ति दे।’’ आगरा के पुलिस परेड ग्राउंड में डीआईजी असीम अरूण के नेतृत्व में एक हाथ में संविधान और दूसरे हाथ में तिरंगा लिये पुलिस के जवानों को पूरे आत्मविश्वास के साथ जिसने भी यह शपथ ग्रहण करते देखा वही रोमांचित हो उठा।

           डीआईजी असीम अरूण पुलिस विभाग में परिवर्तन के इस कार्य को अब तक किये गये परिवर्तन कार्यो में सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण मानते हैं। लेकिन वे अपने लक्ष्य के प्रति पूरे आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई देते हैं। कुछ कर गुजरने की दृढ़ इच्छाशक्ति उनके चेहरे और बातों से स्पष्ट झलकती है। वे विश्वास के साथ कहते हैं कि उन्हें लगता है कि आगरा पुलिस एक महीने में संगठित अपराधों पर शतप्रतिशत नियंत्रण प्राप्त कर लेगी। उनका मानना है कि पुलिस का भ्रष्टाचारविहीन होना हॉबी की तरह नहीं रहे। इसका परिणाम जनता को दिखना चाहिए। जरूरत इस बात की है कि भ्रष्टाचार पर रोक भी लगे और पुलिस की भूमिका भी प्रभावी हो।

            डीआईजी असीम अरूण एवं हमारे प्रधान संपादक के बीच पुलिस भ्रष्टाचार मुक्त अभियान के संदर्भ में दो सितम्बर को विस्तृत चर्चा हुई। प्रस्तुत है हमारे सवाल और डीआईजी असीम अरूण के जवाबः-

प्रश्न:- एक ऐसा विभाग जिसे भ्रष्टाचार से मुक्त करने के बारे में सोचना तो दूर, कल्पना भी नहीं की जा सकती, उस पुलिस विभाग को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का आपने बीड़ा उठाया है। इस दिशा में ऐसी ऐतिहासिक पहल करने की शक्ति, प्रेरणा एवं ईमानदारी आपको कहाँ से मिली? आगरा पुलिस को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का अभियान शुरू करने के पीछे कारण क्या है?

डीआईजीः- जहाँ तक ऊर्जा, प्रेरणा और, ईमानदारी की बात है मेरे पिता श्री श्रीराम अरूण ने पुलिस विभाग में अनेक कीर्तिमान स्थापित किये। उनमें से एक कीर्तिमान यह भी है कि पूरी ईमानदारी के साथ काम किया जाये। मैं उनकी महानता से बहुत पीछे हॅू और न ही उनकी ईमानदारी से अपनी कोई तुलना कर सकता हूँ। लेकिन मुझे उनसे निरंतर प्रेरणा मिली। मैंने भी अपनी सर्विस के दौरान हमेशा ही इस बात की कोशिश की कि ईमानदारी से काम किया जाए और काम करने का माहौल बनाया जाये। भ्रष्टाचार की हर शिकायत को गंभीरता के साथ लिया और जीरो टालरैंसकी पालिसी अपनाई, हाँ भी सबूत मिले वहाँ बर्खास्तगी ही की। ऐसा करते हुए कष्ट होता है, लेकिन यह जरूरी है।
            अब रही आगरा पुलिस को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए अभियान शुरू करने की बात तो यह अभियान आगरा जनपद की जनता की मांग की प्रतिक्रिया स्वरूप शुरू किया गया है। पूरे देश का माहौल बदल चुका है। जनता पूरी तरह जागरूक हो चुकी है। जनता चाहती है कि सरकारी तंत्र से भ्रष्टाचार समाप्त हो। शासन और प्रशासनिक मशीनरी में सुधार हो। जनता चाहती है कि पुलिस से भी भ्रष्टाचार समाप्त हो। यदि हम ऐसे माहौल में भी जनता की बात नहीं सुनेंगें, तो यह सही नहीं होगा। जनता यही समझेगी कि हम परिवर्तन नहीं चाहते और भ्रष्टाचार में ही खुश हैं।

प्रश्न:- अभियान की शुरूआत कैसे हुई?
डीआईजीः- भष्टाचार को लेकर अलग-अलग रैंक के अधिकारियों में चर्चा होती रहती थी। इसी दौरान भष्टाचार के विरोध में आंदोलन से पूरे देश में एक माहौल बना। मानसिकता ऐसी बनी कि इस समय जो माहौल पैदा हुआ है उसका लाभ उठाया जा सकता है। यदि इस समय कुछ नहीं किया गया तो फिर कभी कुछ नहीं किया जा सकता। इस समय माहौल भी है और मूड भी। यदि यही कार्य हम छह महीने पहले शुरू करने की कोशिश करते तो शायद न कर पाते। सबसे पहली जरूरत इस बात की थी कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए उसके स्वरूप को ठीक से समझा जाय। इस पर खुली चर्चा के लिए 26 अगस्त को पुलिस लाइन के सभागार में सभी थानाध्यक्षों और हर थाने से कुछ पुलिस कर्मियों की बैठक बुलाई गई, जिसमें पुलिस से सम्बन्धित भ्रष्टाचार पर खुलकर चर्चा हुई। बैठक अपने आप में अनोखी और अनूठी थी। दो घण्टे के लिए आयोजित बैठक चार घण्टे चली और 200 लोगों के साथ शुरू हुई बैठक के अंत में लगभग 500 लोग उपस्थित थे। इस बैठक से जो तथ्य निकलकर आया वह यह कि आगरा के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ-साथ पुलिस कर्मियों में भी भ्रष्टाचार को लेकर पीड़ा है। पुलिस भ्रष्टाचारी भी है और भ्रष्टाचार से पीडि़त भी है। पुलिस में भ्रष्टाचार को लेकर कुछ अजीब सी स्थिति है। बाकी विभागों को भी ग्राण्ट मिलती है। उसमें से कुछ खा जाते हैं और सब स्टैण्डर्ड काम करते हैं। पुलिस विभाग को ग्राण्ट कम मिलती है। इसलिए जनता से छीनती है। अपराधियों और अपराधों को बढ़ावा देती है। अपराधियों से पैसा लेती है और सरकारी में काम में लगाती है। यह सब बड़ी ही असमंजस जैसी स्थिति है।
       बैठक में सभी थानाध्यक्षों को निर्देश दिये गये कि वे अपने-अपने थानों में जाकर बैठक करें और पूरे स्टाफ से विचार विमर्श करें और सभी का अभिमत लें? सभी थानाध्यक्षों ने फीड बैक दिया और कि हाँ स्टाफ के लोगों का विचार है कि, हमारे अंदर भ्रष्टाचार है लेकिन हम इस मकड़जाल से निकालना चाहते हैं। इस  दिशा में यदि शुरुआत होती है तो वे साथ हैं। इसी के साथ आगरा पुलिस को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के प्रयास शुरू कर दिये गये है। हम स्वीकार करते है कि हमारे विभाग के अंदर कमियां है और हमारे अंदर कुछ व्यक्तिगत कमिंया हैं जिन्हें हम दूर करने का प्रयास करेंगें।

प्रश्न:- इस दिशा में प्रयासों का स्वरूप क्या है? किस तरह के प्रयास किये जा रहे हैं?
डीआईजीः- जहां तक इस दिशा में प्रयास किये जाने का सवाल है। यह प्रयास दो दिशाओं में किये जा रहे हैं। थोक एवं फुटकर। थोक का अर्थ है संगठित अपराध जैसे-जुआ, सट्टा, डग्गेमारी की बसें, वेश्यावृत्ति, अवैध खनन आदि। पुलिस इन अपराधों को करने वालों से नियमित रूप से महीनेदारी वसूल करती है और अपराधों को होने देती है। प्रयास किया जा रहा है कि ‘‘पुलिस का भ्रष्टाचारविहीन होना हॉबीकी तरह नहीं रहे। इसका परिणाम जनता को दिखना चाहिए। यदि हमने पैसा लेना तो बन्द कर दिया और अपराधों को फिर भी होने दिया तो इसका फायदा क्या हुआ। हम तो महात्मा बन गये और समाज को इसका कोई लाभ नहीं हुआ तो जनता तो इससे खुश नहीं होगी। जरूरत इस बात की है कि भ्रष्टाचार पर रोक भी लगे और पुलिस इफैक्टिव भी हो। ईमानदार पुलिस के साथ-साथ इफैक्टिवपुलिस होने पर ही लम्बे समय तक भ्रष्टाचार से मुक्त रहा जा सकता है और जनता की नजरों में पुलिस की स्थाई रूप से स्वच्छ छवि निर्मित की जा सकती है’’। संगठित अपराध के अलावा फुटकर अपराधों जैसे ट्रक से वसूली करना अथवा किसी केस के दौरान विवेचनाधिकारी द्वारा पैसा लेना आदि रोकने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए पिछले 5-6 महीने से 100 नम्बर को काफी इफैक्टिवकिया गया है। पहले इस नंबर पर केवल अपराध सम्बन्धी सूचनायें दर्ज होती थीं, अब पुलिस के विरूद्ध भ्रष्टाचार की शिकायतें भी दर्ज होती हैं। दो-तीन शिकायतें प्रतिदिन दर्ज हो रही हैं। जिन मामलों में पुख्ता सबूत मिलते हैं, उनमें सख्त कार्यवाही की जाती है। अभियान दो तरह से चल रहा है। एक आत्मशुद्धि का और दूसरे उन लोगों के साथ सख्ती का जो अपने अंदर सुधार नहीं करना चाहते उनके लिए शिकायत दर्ज कर जांच की प्रक्रिया शुरू की गई है।
            कुछ हमारे विभाग का अंदरूनी भ्रष्टाचार है, जैसे हमारा कोई सिपाही है उसका टीए बिल लंबित है और उसे पास कराने के लिए संबंधित लिपिक द्वारा 15 प्रतिशत कमीशन की मांग की जा रही है। अथवा इस तरह की अन्य अंदरूनी विभागीय शिकायतें हैं, उनको खत्म करने के लिए विभागीय हेल्प लाइन शुरू की गयी है, जिस पर पीडि़त अपनी शिकायत प्रेषित कर सकता है, यदि उसकी शिकायत जायज है तो निश्चित रूप से पीडि़त को मदद मिलेगी और पुख्ता सबूत होने पर दोषी को बर्खास्त किया जायेगा। पीडि़त का काम हो जाये, दोषी को सजा मिल जाये इसके साथ हमें यह भी देखना होगा कि हमारी व्यवस्था में सुधार हो। न लोगों की कतारें लगें और न ही फाइलों की कतारें लगें। जहाँ भी कतारें लगी है जंप करने के लिए लोग पैसा देने के लिए तैयार हैं। कोशिश हो रही है कि जहाँ भी कतारें लग रही हैं, वहां कतारें न लगें। जिसका भी काम होना है, उसका काम रूटीन कोर्स में हो जाना चाहिए। यदि निर्धारित समय पर कार्य नहीं होता है तो इसका वाजिब कारण भी होना चाहिए। यदि कतारें नहीं लगेंगी तो लोग कतारें जंप करने की कोशिश नहीं करेंगें और न ही पैसा लेने वाले पैसा देने के लिए लोगों को विवश करेगें।

प्रश्न:- पुलिस को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का अभियान आपकी दृष्टि में कितना प्रतिशत तक सफल हो पायेगा?
डीआईजीः- यह कहना तो मेरे लिये बहुत मुश्किल है लेकिन मुझे लगता है कि जहाँ तक संगठित अपराधों की बात है हम एक माह में संगठित अपराधों पर शत-प्रतिशत नियंत्रण पा लेगें। रही व्यक्तिगत अपराध अथवा व्यक्तिगत भ्रष्टाचार की बात तो हम ऐसा माहौल बनाने में निश्चित रूप से, सफल हो जायेगें कि व्यक्तिगत अपराध करने वाला पुलिस कर्मी अपराध करने से पहले सौ बार सोचेगा क्योंकि उसे इस बात का भय होगा कि वह जिस ट्रक चालक से वसूली कर रहा है अथवा अन्य किसी से वसूली करा रहा है वह उसकी शिकायत 100 नम्बर पर कर सकता है।
            पीडि़त व्यक्ति में यह विश्वास स्थापित होगा कि व्यवस्था भ्रष्ट नहीं है, वसूली करने वाला भ्रष्ट है, इसलिये वह निश्चित रूप से शिकायत करेगा क्योंकि वह जानता है कि शिकायत करने पर अब कार्यवाही होगी।



प्रश्न:- प्रारम्भिक चरण में अभियान का कितना प्रभाव नजर आ रहा है?
डीआईजीः- अभी तो अभियान शुरू हुए कुछ ही दिन हुए हैं, इसलिए कुछ ठोस कह पाना सम्भव नहीं होगा। लेकिन सुखद परिणाम यह है कि यातायात पुलिस ने अच्छा काम किया है। सिविल पुलिस के जो पिकेट विभिन्न चैराहों पर तैनात किये जाते थे, उनसे कहा गया है कि यदि ठेलों और टेम्पों की भीड़ लगी तो समझा जायेगा कि वसूली की जा रही है। अधिकांश चैराहे क्लीयर नजर आ रहे है। सख्ती के साथ चालान किये जा रहे हैं। चालान करने वालों को पैसा आफर नहीं किया जा रहा, यदि आफर किया जा रहा है तो उसे स्वीकार नहीं किया जा रहा। दूसरा सुखद परिणाम यह निकला है कि कुछ लोगों ने फीड बैक किया है कि पासपोर्ट की जांच में दस्तूर के रूप में लिये जाने वाले 500 रूपये अब नहीं लिये जा रहे है। लेकिन ये केवल कुछ ही दिनों की उपलब्धि है। कम से कम छः महीने बाद ही ठोस रूप में कुछ कहा जाना सम्भव हो पायेगा कि माहौल स्थायी रहेगा अथवा नहीं।

प्रश्न:- अभियान के सन्दर्भ में नागरिकों और मीडिया से आपकी अपेक्षायें क्या हैं?
डीआईजीः- नागरिकों से अपेक्षा है के जहाँ पुलिस सुधर रही है और उन्हें लग रहा है कि पुलिस कर्मी अच्छा कार्य कर रहे हैं तो उन्हें मुस्कुराकर धन्यवाद अवश्य कहें। क्योंकि जिस व्यक्ति को पैसे की संतुष्टि नहीं मिल रही उसे सम्मान की संतुष्टि जरूरी है। मीडिया तो आईना है जैसा हम करेंगें वैसा ही दिखायेगा। मीडिया को जो दिखाई दे रहा है वही दिखाये, क्योंकि यदि हम मीडिया से अपेक्षा करेगें कि वह केवल हमारी अच्छाईयों को ही दिखाये तो यह भी उचित नहीं होगा। मीडिया से अनुरोध है कि चाहे जिस रैंक का व्यक्ति हो, यदि वह अच्छा कार्य करता है तो उसके प्रति मीडिया का सकारात्मक रूख रहना चाहिए। हमारे सिपाही पहले भी अच्छा काम करते थे और आज और भी अच्छा कर रहे हैं, उनके गुडवर्क के साथ यदि उनका डाक टिकट साइज का ही फोटो छापा जाये तो वे प्रोत्साहित होगें। लेकिन उसी सिपाही की फोटो आती है जो किसी को पीट रहा हो या दारू पिये पड़ा हो। यदि किसी क्षेत्र के संगठित अपराधों में परिवर्तन हो रहा है तो ठीक है लेकिन यदि मीडिया को लग रहा है कि किसी क्षेत्र में प्रयास के बाबजूद संगठित क्राइम नहीं रूका है तो वह इसकी सूचना दे, चाहे तो समाचार प्रकाशित करे ताकि कार्यवाही की जा सके और पता लगाया जा सके कि संगठित अपराध सम्बन्धित थाना पुलिस की जानकारी में हो रहा है या नहीं। यदि थाने की जानकारी में हो रहा है तो कार्यवाही होना निश्चित है।

प्रश्न:- अभियान को लेकर राजनेताओं की कैसी प्रतिक्रिया है?
डीआईजीः- बहुत अच्छी प्रतिक्रिया है। विभिन्न दलों के हमारे जितने भी जनप्रतिनिधि है उन्होने फोन पर या मिलने पर बधाई दी है। ग्राउण्ड का फीड बैक सबसे अच्छा जनप्रतिनिधियों को ही मिलता है। जमीनी हकीकत की सबसे अच्छी समझ उन्हें ही होती है। फीड बैक मिल रहा है कि उनके इलाके में संगठित अपराध नहीं हो रहे हैं। जहाँ तक व्यक्तिगत भ्रष्टाचार की बात है, उसमें सुधार होगा तो राजनेता खुश होगें। उन्हें शिकायतें लेकर आना नहीं पडे़गा और परेशानियों का सामना नहीं करना पडे़गा। रूलिंग पार्टी के नेताओं के लिए और अच्छी बात है कि सरकार ने अच्छी व्यवस्था बनाकर दे दी। सरकार की अपेक्षाओं के अनुरूप ही सब कुछ किया जा रहा है।

प्रश्न:- व्यक्तिगत बातचीत के दौरान अधिकांश वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भ्रष्टाचार का एक बहुत बड़ा कारण सरकार और विभाग द्वारा थानों को आवश्यक संसाधन उपलब्ध न कराना बताते हैं। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं?
डीआईजीः- हाँ यह सही है। दो साल पहले जब मैं अलीगढ़ में था तब चर्चा के दौरान मुख्यमंत्रीजी के सामने यह बात आई थी। इस पर उनके निर्देश पर यह व्यवस्था बनाई गयी थी कि प्रत्येक थाने को एक लाख रूपया प्रतिमाह दिया जायेगा, जिसमें बहुत बड़ा हिस्सा वाहन के ईंधन का है पिछले दो साल से दो-ढाई लाख रूपया प्रतिवर्ष मिला है, जबकि जरूरत है 12 लाख प्रतिवर्ष की। पोइटिकभाषा में हम कह सकते है कि पाइप लाइन बिछ चुकी है, लेकिन पानी सुबह-शाम आ रहा है, जबकि जरूरत है 24 घण्टे आपूर्ति की। मुझे पूरा विश्वास है कि यदि आगरा पुलिस छः महीने के अंदर कानून-व्यवस्था को दुरूस्त कर सरकार को संतुष्ट कर पाती है और ऐसा माहौल बना पाने में सफल होती है कि नागरिकों को लगे कि पुलिस तंत्र अच्छा काम कर रहा है; ट्रकों से वसूली आदि बंद होकर सरकार के राजस्व में वृद्धि होती है तो स्वाभाविक है कि वही राजस्व वृद्धि हमें वापस मिल जायेगी और पाइप लाइन में पानी की पर्याप्त आपूर्ति होने लगेगी।

प्रश्न:- आप अपनी इस ज़िम्मेदारी को निभाते हुए कैसा महसूस करते हैं?
डीआईजीः- ये मेरे जीवन का सबसे बड़ा परिवर्तन का प्रयास है। अभी तीन-चार साल से 100 बेस्ड फंक्शनिंग की ओर पुलिस को ले जाने का काम किया। सिपाहियों की ट्रेंनिंग कराई ताकि पेट्रोल यूनिटें और बेहतर हो जाये। लेकिन ये सब छोटे कार्य थे। पुलिस का भ्रष्टाचार से मुक्त करना सबसे ज्यादा टफ काम है। इतनी बोल्डनेस के साथ मैं कभी काम नहीं कर पाया। सोचा भी नहीं, क्योंकि इस तरह की बात उठती थी कि जब सारे डिपार्टमेंट करैप्ट है, फिर आपको ही क्या पड़ी है परिवर्तन की। इससे पुलिस विभाग की कार्यक्षमताकम होगी। हो सकता है कि वे सच कहते हैं लेकिन अब वो माहौल नहीं है लोग परिवर्तन चाहते हैं। देश का माहौल बदल चुका है। लोग चाहते है सुधार हो, जनता जागरूक हो चुकी है।
सीढि़यों की सफाई
एक सिपाही ने बहुत अच्छी बात कही थी कि सीढि़यों की सफाई हमेशा ऊपर से नीचे की ओर की जाती है, नीचे से ऊपर की ओर नहीं। मतलब ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक पूरी सफाई होनी चाहिए। बीच में एक सीढ़ी साफ और ऊपर और नीचे गन्दी हैं तो कोई नोटिस ही नहीं लेगा। लोग यही मान कर चलेंगे सारी सीढि़याँ गन्दी हैं। जब पूरी सीढ़ी साफ हो जाएगी तभी साफ मानी जायेगी।


1 comment:

Deepak Saxena said...

Good Work

Watch This:-

http://corruptionatagra.blogspot.in/

How some illegal persons used to harass me. Please watch youtube videos to better understand.